"सुख दुःख के साथी :-सच्चे मोती"
बहुत रोका
बेहिसाब रोका
पर आख़िर लुढ़क ही गया
आँख से वो एक आँसू
जिसे मैंने ज़ब्त किया था
घनेरी पलकों में मेरी
कितनी की कोशिश
कि भावनायें मेरी
यूँ छलक ना जाए
नयनों से मोती
बिखर ना जाए
पर जब भी थी
उदास, परेशान, चिंतित
आँखों ने मेरा कहा ना माना
दिल के गहरे ज़ख्मों को
आँखों से बहा डाला
या जब भी कभी
सफ़लता का स्वाद पाया
अपनों का साथ पाया
खुशियो का उत्सव जो आया
तो होंठों पर बिखरी हंसी
महफ़िल भी थी
फूलों से सजी
लेकिन जाने कहाँ से
आ गई आँखों के कोनों पर नमी
ये आंसुओं की लड़ी
सुख और दुःख दोनों के लिए है बनी
यदि आपके पास है कुछ आँखे
जो आपकी जीत और हार दोनों पर रोती है
तो क़िस्मत वाले हैं आप
क्यूँकि आपके पास रिश्तों के कुछ सच्चे मोती है
प्रेरणा अरोड़ा