छलिया
अचानक ही मिलना हुआ था उससे बीच सफ़र में
और अचानक की कहना पड़ा अलविदा हमको
जाते वक्त उसको मुड़कर देख भी ना पाए हम
क्योंकि अगर वह भी मुड़ कर देख लेता हमें
तो उसे छोड़ कर कभी जा ही नहीं पाते हम
और जो ना देखता पलट कर वह हमको
तो आंखों की नमी आंखों में ही जम जाती
जिसके लिए बर्बाद किया था इतना वक्त हमने
ये जुबान उसको बेवफा भी कैसे कह पाती ?
वो लम्हे अब यादों के पिटारे में बंद है
मुस्कुरा रही हूँ ,पर दिल की हंसी कुछ मंद है
वो एक सपने सा था , सुनहरा और हसीन
और सपने एक ना एक दिन , टूट ही जाते है
तो क्या गिला और क्या शिकवा करना उससे
क्यूंकि हकीकत में कहाँ सच होते हैं सब किस्से ?
पर उसका यूँ अचानक से जीवन में आना
और फिर लौट कर चले जाना
कुछ और शांत और समझदार कर गया मुझको
"लगाव देते है घाव"
, ये बात सच कर गया वो
मिश्री सी मीठी
बातें करके मुझे छल गया जो
जीवन तो चलने का नाम है , कैसे रुक जाए हम
आगे नए मोड़ पर सुकून होगा
यही खुद को समझाये हम
प्रेरणा अरोड़ा
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