"मैं ...गणित के प्रश्न सी "
झल्ला कर कहा था तुमने मुझे
कि मैं हूं "गणित" के प्रश्न सी
कठिन ,जटिल , उलझन भरी
हंस पड़ी थी मैं मन ही मन में
तुमने भी क्या उपमा दी है मुझे
"गणित" (+ - * / ) की ....
खैर छोड़ो और सुनो
हाँ , मैं हूं "गणित" के सवाल सी
बेशक थोड़ा सी कठिन
पर हल करने योग्य
सोचो ज़रा
किताबों के बाजार में
हर विषय की कुंजी उपलब्ध है
कई बार हम किसी और प्रश्न का उत्तर
यदि चिपका भी दे किसी दूसरे प्रश्न में
तो भी नंबर तो मिल ही जाते हैं उस विषय में
पर "गणित" है सटीक
कोई दूसरा उत्तर संभव ही नहीं
तरीके कई हो सकते हैं हल करने के
पर उत्तर सदैव "एक"
मुझे नहीं बनना दूसरे विषयों सा
जिनके जवाब उपलब्ध हो हर किसी के पास
बस इतना ही है कि
"गणित" को हल करने से पहले
उसे समझना होगा , अपनाना होगा
उस विषय से प्रेम करना होगा
क्यूँकि "गणित" के सवाल में ही
छुपा होता है उसका जवाब
पूछो उनसे जिन्हें "गणित" से प्रेम है
उनके लिए "गणित" है
कितनी सरल, सहज और अपनाने योग्य
जब तक समझ नहीं पाओगे तुम "गणित" और "मुझको"
तो हर विद्यार्थी की तरह तुम भी
"गणित" और "मुझे" ही "गलत" ठहराओगे
प्रेरणा अरोड़ा