"यादगार सफर"
मुझे पसंद है यात्राएं
रेलगाड़ी वाली
स्लीपर क्लास वाली
जिसमें मिलते हैं
कई स्तर ,कई धर्म, कई जाति के लोग
और थोड़े ही समय में
घुल मिल जाते हैं एक दूसरे से
ऐसे जैसे बरसों से जानते हो एक दूसरे को
कुछ ही देर में आपस में बांट लेते हैं
पूरी ,अचार , भुजिया,
और कभी-कभी अपनी सीट भी
आत्मीयता इतनी बढ़ जाती है
कि बच्चे ताश के पत्तों से खेलने लगते हैं
पुरुष बिजनेस और राजनीति की बातें करते हैं
और महिलाएं घर-परिवार
चूल्हे-चौके के साथ-साथ
अपने दुख-दर्द भी बांट लेती है
थोड़े ही समय में कितना गहरा रिश्ता
बन जाता है आपस में
बिना यह सोचे और समझे कि
कुछ ही देर में अगले स्टेशन पर
कुछ यात्री छुट जाएंगे....
और अगर वह हमारे गंतव्य तक साथ चले भी
तो स्टेशन से बाहर आते ही
हम अपने-अपने रास्तों में निकल पड़ेंगे
आगे फिर कभी न मिलने के लिए....
ऐसे ही होती है जीवन की कुछ यात्राएं
कुछ संबंध और कुछ रिश्ते
जो कुछ देर , कुछ दूरी के लिए हमारे साथ होते हैं
उनके
साथ
होने
से
सफर
हसीन
हो
जाता
है
और जीवन यात्राएं हमेशा के लिए "यादगार"
प्रेरणा अरोड़ा