मुसाफिर:- "खुद" की तलाश में
समय दर समय के अंतराल में
हम निकल पड़ते हैं मुसाफिरों की तरह
घर का ऐशो आराम , सूकून छोड़
मिलने एक दूसरे से ,
तलाशने खुद को खुद में
क्योंकि घर की चार दीवारों में
मिलती है सिर्फ जिम्मेदारियां
और घर के बाहर
बहुत सारी दुनियादारियां
जो रोकती है हमें
मिलने एक दूसरे से
मिलने खुद से
इसीलिए जब भी मिलता है मौका
हम इन जिम्मेदारियां और दुनियादारियों से
नजरे चुरा कर दौड़ पड़ते हैं शहर से बाहर
करने अपना आत्म अवलोकन
मिटाने सारे ग़मों रंज
समेटने सृष्टि के सारे रंग
करने मरम्मत अपने किरदारों की
ताकि जब लौटे
अपने शहर में वापस
तो न केवल बनावट नई हो
सोच भी नई हो
और एक नया जोश और उत्साह
लिये हम तैयार हो
करने सामना अपने जीवन में
आने वाली हर परिस्थिति का
सकारात्मक रूप से
प्रेरणा अरोड़ा