हां ,मुझे प्यार हुआ है
बचती रही मैं हमेशा से ही प्रेम से
लेकिन जैसे सावन के मौसम में
चाहे कितना भी बचकर चलो
बारिश की बूंदे भिगो ही देती है आपको
चाहे छाता लेकर चलो या बरसाती पहन कर
कहीं ना कहीं से कुछ बूंदे
पड़ ही जाती है आप पर
या फिर सड़क पर बहता बरसाती पानी
गीला कर ही देता है आपके कपड़ो को
इस तरह से प्रेम भी
कहीं ना कहीं से ढूंढ लेता है आपको
चाहे कितनी भी कोशिश करो बचने की
और जाने अनजाने
चाहे थोड़ा सा ही सही
आप भी भीग ही जाते हो उस रंग में
जानना नहीं चाहेंगे मुझे किससे हुआ है प्रेम
बड़े राज की बात है
" ख़ुद से "
क्योंकि इस दुनिया में सबको चाहने का वक्त है हमारे पास
बस ख़ुद से प्यार करने का नहीं
इसलिए मैंने चुना है खुद को
और रंग गई अपने ही रंग में
सच में बड़ा खुबसूरत होता है ये एहसास
कभी आप भी करके देखें स्वयं से प्रेम
प्रेरणा अरोड़ा