स्त्री: पुरुष
पुरुष कभी नहीं कर सकता
बराबरी स्त्री की
क्यूंकि
वो कभी नहीं कर सकता प्रेम
राधा की तरह ,मीरा की तरह
वो कभी नहीं कर सकता प्रतीक्षा
शबरी की तरह, अहिल्या की तरह
वो कभी नहीं कर सकता
अपने साथी का आज्ञा पालन
सीता की तरह, द्रोपदी की तरह
वो कर सकता है केवल
अपने अहम का पोषण
जता सकता है स्त्री पर अधिकार
कर सकता है उसका शोषण
दे सकता है उसको लांछन
पर नहीं बन सकता स्त्री
क्यूंकि उसके पास ना सब्र है
ना सहृदयता
और प्रेम है भी अगर
तो केवल देहिक
आत्मा का आत्मा से बंधन
जो समझे वो ख़ास है
खुशनसीब है वो स्त्री
ऐसा पुरुष जिसके पास हैं
प्रेरणा अरोड़ा