बेहद जरूरी ज़रूरत
कितना थोड़ा सा चाहिए होता है इंसान को
मुट्ठी भर जमीन... थोड़ा सा आसमान
थोड़ी सी फिक्र... थोड़ी सी परवाह
कोई हो जो करें... हमसे प्यार बेइंतहा
बिना कोई मतलब... बिना कोई चाह
पर कितना मुश्किल हो जाता है इतना सा भी पा लेना
हम चीजें तो बहुत सारी इकट्ठी कर लेते हैं
बड़ा मकान ,ढेर सारा फर्नीचर ,दो तीन गाड़ियां
बहुत सारे गहने, कपड़े ,बहुत सारा कैश
शायद विदेशों में भी कर आते हैं कुछ दिन सैर
पर फिर भी मन को नहीं मिलती है पूर्णता
इन में भी मन हमेशा खुशी और सुकून ही क्यूँ ढूंढता
क्योंकि इस उपभोक्तावादी संस्कृति में
आसान है भौतिकवादी साधन इकट्ठे करना
पर बहुत मुश्किल है
वह थोड़ा सा पाना
जो जरूरी है ..."बेहद जरूरी" जीने के लिए 💞
प्रेरणा अरोड़ा