गुनाहगार
मैंने देखा है तुम्हारे भीतर
एहसासों का एक समंदर
लहरों की तरह उछलती बेसब्र चाह
सब कुछ मिटा कर मुझमे समा जाने की कशिश
पर कुछ दिनों से तुम ठहर से गए हों
शांत और गंभीर
कोई हलचल नहीं , कोई बेसब्री नहीं
या शायद मैं तुम्हारे मन में उठ रहे तूफ़ानों को
समझ पाने में हूँ असफल
गुनाहगार हूँ मैं
तुम्हारी कलकल बहती भावनाओं की
धारा को रोकने की , टोकने की
उसे बांधने की
अपनी सुविधा के हिसाब से उसे मोड़ने की
जबकि मैं , ये जानती हूँ कि
व्यक्ति और प्रकृति दोनों तभी खूबसूरत और जीवंत लगते है ,
जब तक , उन्हें वो जैसे है वैसे ही रहने दिया जाए,
बहने दिया जाए
वर्ना वो या तो लाते हैं विनाश
या खो देते हैं अपनी निश्चल सुंदरता
हां मैं हूँ गुनाहगार तुम्हारी ख्वाहिशो की 🙏
प्रेरणा अरोड़ा