" नामुमकिन"
जानती थी मैं
कि एक ना एक दिन यही होगा
चलते हुए राह में साथ-साथ
एक दिन अचानक तुम कहोगे मुझे
कि मैं लौटना चाहता हूं वापस
बिना यह जाने कि.. मैं क्या चाहती हूं ?
और क्या होगी मेरी मन: स्थिति....
तुम सुना दोगे अपना फैसला
और शायद लौट भी पाओगे
अपनी बसाई दुनिया में
पर मैं बीच राह में खड़ी रह जाऊंगी
अकेली ...तन्हा ...उदास
क्योंकि मेरे लिए दहलीज लांघना
शायद मुमकिन हो
पर वापस लौटना
"नामुमकिन"
प्रेरणा अरोड़ा