ऊन के गोले की तरह
जब उलझ रही हो जिंदगी
मन हों बेहद अशांत
कोई राह नहीं सूझ रही
तो मिलो उससे जो हो सबसे खास
बिना बोले ही जो समझ ले मन की बात
कुछ समझ में आया कि नहीं समझे
वह ना हो कोई दोस्त , ना कोई रिश्तेदार
ना हो आपका हमसफर ,ना ही कोई राज़दार
वह जो तुम्हें अच्छी तरह से पहचानता है
तुम्हें रोज आईने में देखकर मुस्कुराता है
बाल बनाते हुए या माथे पर बिंदिया सजाते हुए
पल भर के लिए उसे देखकर इग्नोर कर देते हो
क्योंकि आपाधापी भरी जिंदगी में
इससे ज्यादा वक्त नहीं है तुम्हारे पास
हां मैं खुद से खुद को मिलने की बात कर रही हूं
बैठो शांत भाव से
किसी एकांत कोने में
जहां सिर्फ तुम हो और तुम हो
खंगालों अपने जज्बात
करो अपने आप से बात
थोड़ा रो लो ,कर लो शिकायत उसके पास
वह नहीं कहेगा किसी और से ,रखो इतना भरोसा और विश्वास
मन का गुबार अपने आप हटेगा
परेशानियों में भी उम्मीद का दीप जलेगा
चिंता की धुंध छठ जाएगी ऐसे
सूरज के आने पर भागे अंधकार जैसे
तो आज के बाद जब भी मन हो बेचैन*और *उदास
अपने आप को बुला लेना अपने पास
क्योंकि इस भागती दौड़ती जिंदगी में सब के लिए है समय तुम्हारे पास
दूसरों की सुख सुविधाओं का भी है तुम्हें पूरा ख्याल
बस अगर कोई छूट रहा है तो वह है स्वयं का स्वयं से साथ
बढ़ेगा आत्मविश्वास जब थाम लोगे अपने ही हाथ से अपना हाथ
प्रेरणा अरोड़ा