रात का कोलाहल
रात को 2:00 से 3:00 के प्रहर में
अंधेरी रात में
गहरे सन्नाटों के बीच
जब पूरा शहर सोया रहता है
कोई छत पर , कोई कमरों में
तो जो मन रह जाता है
उस समय जगा
घिर जाता है अनेक विचारों से
ख्यालों से ...उलझनों से
सड़के होती है उस समय
निपट शांत और सुनसान
मगर मन के गलियारों में
जिस तेजी से दौड़ते हैं विचार
उन्हें नियंत्रित करना
लगभग असंभव सा होता है
कुछ अनसुलझे प्रश्न
आकर खड़े हो जाते हैं सामने
जिन्हें दिनभर की भागदौड़ में
किनारा कर देते हैं हम
या शायद बचना चाहते हैं
उन सवालों से और
उनसे उपजने वाले जवाबों से
वो सभी एक साथ हमारे सामने
आकर बैठ जाते हैं यक्ष की भांति
कि अब बच कर कहां जाओगे ?
तुम्हें देना पड़ेगा हर सवाल का जवाब
और निकालना पड़ेगा हर उलझन का हल
सचमुच रात 2:00 से 3:00 का समय
बहुत शांत होता है बाहरी तौर पर
मगर उस समय बहुत अशांत होता है मन
प्रेरणा अरोड़ा